चोरी और गुमशुदगी की हाल ही की घटनाएं भारत में कलाकृतियों का बीमा कराने की मुश्किलों की ओर संकेत करती हैं।महीनों तक खामोश रहनेवाले समुदाय के लिए यह चिंतापूर्ण पखवाड़ा था। सीबीआइ ने रवि वर्मा की बाउरिंग्स नाम के नीलाम घर में बिकने जा रही कृतियां बरामद कीं, अंजलि इला मेनन का 3.5 लाख रु, का मुरानो मूर्तिशिल्प एक प्रदर्शनी से गायब हो गया, फिर अर्पणा कौर की नकली कलाकृतियां दिल्ली के लागपतनगर से बरामद हुईं।
कला जगत अक्सर संग्रहालयों में उपेक्षा, प्रोत्साहन और संरक्षण का अभाव सरीखे मुद्दे उठाता रहा है। पर फौरी चिंता कलाकृतियों को लेकर अपराध में आई तेजी है। इला मेनन की कृति की चोरी से कुछ महीने पहले हैदराबाद में एम.एफ.हुसैन की कृति गायब हुई थी। कला जगत को शक है कि और भी नकली कलाकृतियां बाजार में हैं।

दिल्ली में गैलरी एस्पेस की मालकिन रेणु मोदी का अनुमान है कि यह समस्या बढ़ेगी, पर प्रमोटर संजीव भार्गव के अनुसार यह कला जगत में हुए खासे विकास का नतीजा है। उनके मुताबिक, "समस्या यह है कि तैयब मेहता और हुसैन की कलाकृतियों का बेहद ऊंची दरों पर बिकना भले ही भारतीय कला के बढ़ते मूल्यों का सबूत है, पर इस क्षेत्र में व्यापार अभी संगठित नहीं है।" क्यूरेटर इना पुरी कहती हैं कि कलाकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है। "कोई जेमिनी रॉय जैसे लोगों का भोलापन तो समझ सकता है, पर आज के कलाकारों को यह पता होना चाहिए कि बाजार में उनकी कितनी कीमत है और उन्हें ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए।" उन्होंने दिल्ली के होटल आइटीसी मौर्य में प्रदर्शित सभी कलाकृतियों का बीमा कराया है। वे पूछती हैं, "पिकासो की प्रदर्शनी लगती है तो राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय की सुरक्षा कौन करेगा? हमें समस्या बढ़ने से पूर्व ही खत्म करनी होगी।" दूसरे के मुताबिक, यह सब इतना आसान नहीं। बीमे के लिए प्रमाणीकरण और मूल्यांकन जरूरी है। बकौल मेनन, "बीमा प्रक्रिया इतनी अटपटी है कि इसमें कला कर्म से ज्यादा कैनवस की कीमत शामिल की जाती है।" मोदी बताती हैं कि कैसे नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने उनको कुछ मूर्तिशिल्प का नुकसान होने पर 100 रू का मुआवजा देने की पेशकश की। उनका मानना है कि मौजूदा बीमा महज धोखा है, सतही तौर पर आपकी कलाकृति का बीमा तो होता है। पर बात आगे बढ़ने पर बीमा एजेंसी पूछेगी, "इसका मूल्यांकन किसने किया?" कला संग्राहक नितिन मयाना इसके लिए बीमा कंपनियों में जागरूकता की कमी को जिम्मेदार ठहराते हैं, "दुनिया भर में बीमा कंपनियां कला का इस्तेमाल संभ्रांत व्यक्तियों तक पहुंचने के लिए करती हैं। भारतीय कंपनियों ने अभी इस तरफ दिमाग नहीं लगाया है, हालांकि दस साल के प्रकाशित आंकड़े उपलब्ध हैं और मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है।" पश्चिम में एक्सा जैसे बीमा संगठनों ने कला के बीमे के लिए अलग से शाखा बना रखी है जिसमें मूल्यांकन आसानी से करने वाले भी हैं तो प्रमाणीकरण करने वाले भी।
चित्रकार मंजीत बावा का सुझाव है कि बीमा एजेंसियों की मूल्यांकन और प्रमाणीकरण सेवाएं शुरू होने तक कलाकारों व कलादीर्घाओं की समिति बनाई जाए, जिससे बीमा कंपनियां सलाह लें। दिल्ली की गैलरी ऑनर्स एसोसिएशन इससे सहमत है। भार्गव पूरे धंधे की तुलना पहले मुर्गी या अंडा वाली स्थिति से करते हैं। बीमे से इतर समस्या की जड़ यह है कि कला को मुनाफा कमाऊ पेशा नहीं माना जाता, न ही सरकार या कंपनी जगत इसे बढ़वा दे रहा है। कला के लिए वित्तीय योजनाओं को लेकर कुछ बैंकों से बात कर रहे भार्गव कहते हैं कि उन्हें इसका तगड़ विरोध झेलना पड़ा। वे कहते हां, प्रोत्साहन सरकार की ओर से आए। "वक्त आ गया है कि कला भी संगठित क्षेत्र बने, इसके लिए वित्त मंत्रालय राहत दे।"
मोदी कहती हैं, "ये समस्याएं परिपक्व होते बाजार का संकेत हैं और हमें सकारात्मक बनकर ये बाधाएं दूर करनी चाहिए". यही उम्मीद की किरण है।
-कणिका गहलोत, अप्रैल 2003, इंडिया टुडे
प्रस्तुति -प्रीतिमा वत्स
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